हाय रे गर्मी! अब तो शर्म भी नहीं आती ☀️🥵

कभी गर्मी भी मौसम हुआ करती थी – अब तो यह एक अघोषित अत्याचार बन गई है। सूरज मानो आसमान से उतरकर हमारी खोपड़ी पर बैठ गया हो और कह रहा हो, "जा बेटा, अब बता तू कितना झेल सकता है!"
जब तक ठंडी हवा AC या कूलर से निकलती थी, तब तक तो ठीक था। अब हालत यह है कि पंखे भी गर्म हवा फेंकते हुए पूछते हैं, "भाई तू क्या चाहता है मुझसे?" बिजली महाराज तो खुद गर्मी के बहाने छुट्टी पर चले जाते हैं, और मोबाइल चार्जर तक गर्म होकर चुपचाप कोने में घुस जाते हैं।
सड़क पर निकलो तो ऐसा लगता है जैसे शहर नहीं, तंदूर हो गया हो। ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े लोग लाल बत्ती से ज्यादा लाल चेहरे लिए खड़े होते हैं – जलन सिर्फ धूप से नहीं, जीवन से भी हो रही होती है।
अब तो हालत यह है कि गर्मी को शर्म भी नहीं आती। 45 डिग्री पार कर चुकी है, पर कह रही है – "और तेज हो जाऊं क्या?" इंसान तो इंसान, गाएं-बकरियां, कुत्ते-बिल्ली तक छांव ढूंढते फिर रहे हैं।
और सबसे बड़ी बात – जब लोग कहते हैं, “अभी तो मई है, जून बाकी है,” तब गर्मी खुद ठहाका लगाकर कहती है, “अभी तो मैंने ट्रेलर दिखाया है, पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!”
निष्कर्ष:
गर्मी अब मौसम नहीं, सज़ा-ए-तपिश बन चुकी है। और शर्म? वो तो कब की पिघल कर उड़न छू हो गई, शायद उसी हवा में जो इस मौसम में कहीं दिखाई नहीं देती।
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