इतिहासकारों के अनुसार, यह घटना 1739 में हुई थी जब ईरान के शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया था। उस समय मुगल बादशाह मुहम्मद शाह 'रंगीला' दिल्ली की गद्दी पर थे।
कहानी कुछ इस प्रकार है:
* नूर बाई: दिल्ली में नूर बाई नाम की एक तवायफ थी, जो अपनी खूबसूरती और चालाकी के लिए जानी जाती थी। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह भी उसके दीवाने थे और नूर बाई की उन तक आसानी से पहुँच थी।
* कोहिनूर का रहस्य: बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने सुरक्षा की दृष्टि से कोहिनूर हीरे को अपनी पगड़ी में छिपाकर रखा हुआ था। यह बात बहुत कम लोगों को पता थी, लेकिन नूर बाई को बादशाह के करीब होने की वजह से यह रहस्य पता चल गया।
* नादिर शाह से मुलाकात: जब नादिर शाह ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया, तो नूर बाई ने उससे मुलाकात की। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नूर बाई ने पैसों या खुद की सुरक्षा के लिए नादिर शाह को कोहिनूर हीरे के बारे में बता दिया।
* पगड़ी बदलने की चाल: नादिर शाह ने कोहिनूर को हासिल करने के लिए एक योजना बनाई। उसने मुहम्मद शाह के साथ दोस्ती का नाटक किया और एक शांति समझौते के लिए एक समारोह आयोजित किया। इस समारोह में नादिर शाह ने मुग़ल रिवाजों का हवाला देते हुए मुहम्मद शाह से अपनी पगड़ी बदलने का अनुरोध किया।
* धोखा और चोरी: चूंकि यह एक सम्मानजनक प्रथा थी, मुहम्मद शाह मना नहीं कर सके। जैसे ही उन्होंने पगड़ी बदली, कोहिनूर हीरा नादिर शाह के हाथ लग गया। कहा जाता है कि जब नादिर शाह ने पगड़ी में छिपे हीरे को देखा, तो वह खुशी से चिल्लाया "कोह-ए-नूर!" (प्रकाश का पर्वत), और तभी से इस हीरे का नाम कोहिनूर पड़ गया।
इस तरह, एक तवायफ द्वारा दी गई जानकारी की वजह से दुनिया का सबसे कीमती हीरा मुगलों के हाथों से निकलकर नादिर शाह के पास चला गया। यह घटना मुगल साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है।

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